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Friday, June 19, 2020

आओ जैन धर्म को जाने

आओ जैन धर्म को जाने

ऋषभदेव जी राजा नाभिराज के पुत्र थे। नाभिराज जी अयोध्या के
राजा थे। ऋषभदेव जी के सौ पुत्र तथा एक पुत्री थी। एक दिन परमेश्वर एक
सन्त रूप में ऋषभ देव जी को मिले, उनको भक्ति करने की प्रेरणा की, ज्ञान
सुनाया कि मानव जीवन में यदि शास्त्राविधि अनुसार साधना नहीं की तो मानव
जीवन व्यर्थ जाता है। वर्तमान में जो कुछ भी जिस मानव को प्राप्त है, वह पूर्व
जन्म-जन्मान्तरों मे किए पुण्यों तथा पापों का फल है। आप राजा बने हो, यह
आप का पूर्व का शुभ कर्म फल है। यदि वर्तमान में भक्ति नहीं करोगे तो आप
भक्ति शक्तिहीन तथा पुण्यहीन होकर नरक में गिरोगे तथा फिर अन्य प्राणियों के
शरीरों में कष्ट उठाओगे। (जैसे वर्तमान में इन्वर्टर की बैटरी चार्ज कर रखी है
और चार्जर निकाल रखा है। फिर भी वह बैटरी कार्य कर रही है, इन्वर्टर से पँखा
भी चल रहा है, बल्ब-ट्यूब भी जग रहे हैं। यदि चार्जर को फिर से लगाकर चार्ज
नहीं किया तो कुछ समय उपरान्त इन्वर्टर सर्व कार्य छोड़ देगा, न पँखा चलेगा,
न बल्ब, न ट्यूब जगेंगीं। इसी प्रकार मानव शरीर एक इन्वर्टर है। शास्त्रा अनुकूल
भक्ति चार्जर है।, परमात्मा की शक्ति से मानव फिर से चार्ज हो जाता
है अर्थात् भक्ति की शक्ति का धनी तथा पुण्यवान हो जाता है।
यह ज्ञान उस ऋषि रूप में प्रकट परमात्मा के श्री मुख कमल से सुनकर
ऋषभदेव जी ने भक्ति करने का पक्का मन बना लिया। ऋषभदेव जी ने ऋषि जी
का नाम जानना चाहा तो ऋषि जी ने अपना नाम ’’कवि देव’’ अर्थात् कविर्देव
बताया तथा यह भी कहा कि मैं स्वयं पूर्ण परमात्मा हूँ। मेरा नाम चारों वेदों में
’’कविर्देव’’ लिखा है, मैं ही परम अक्षर ब्रह्म हूँ।
सूक्ष्म वेद में लिखा है :-
ऋषभ देव के आइया, कबी नामे करतार।
नौ योगेश्वर को समझाइया, जनक विदेह उद्धार।।
भावार्थ :- ऋषभदेव जी को ’’कबी’’ नाम से परमात्मा मिले, उनको भक्ति
की प्रेरणा की। उसी परमात्मा ने नौ योगेश्वरों तथा राजा जनक को समझाकर
उनके उद्वार के लिए भक्ति करने की प्रेरणा की। ऋषभदेव जी को यह बात रास
नहीं आई कि यह कविर्देव ऋषि ही प्रभु है परन्तु भक्ति का दृढ़ मन बना लिया।
एक तपस्वी ऋषि से दीक्षा लेकर ओम् (ऊँ) नाम का जाप तथा हठयोग किया।

ऋषभदेव जी का बड़ा पुत्र ’’भरत’’ था, भरत का पुत्र मारीचि था। ऋषभ देव जी
ने पहले एक वर्ष तक निराहार रहकर तप किया। फिर एक हजार वर्ष तक घोर
तप किया। तपस्या समाप्त करके अपने पौत्र अर्थात् भरत के पुत्र मारीचि को
प्रथम धर्मदेशना (दीक्षा) दी। यह मारीचि वाली आत्मा 24वें तीर्थकर महाबीर जैन
जी हुए थे। ऋषभदेव जी ने जैन धर्म नहीं चलाया, यह तो श्री महाबीर जैन जी
से चला है। वैसे श्री महाबीर जी ने भी किसी धर्म की स्थापना नहीं की थी। केवल
अपने अनुभव को अपने अनुयाईयों को बताया था।
वह एक भक्ति करने वालों का
भक्त समुदाय है। ऋषभदेव जी ‘‘ओम्‘‘ नाम का जाप ओंकार बोलकर करते थे।
उसी को वर्तमान में अपभ्रंस करके ’’णोंकार’’ मन्त्र जैनी कहते हैं, इसी का जाप
करते हैं, इसको ओंकार तथा ऊँ भी कहते हैं।

हम अपने प्रसंग पर आते हैं। जैन धर्म ग्रन्थ में तथा जैन धर्म के अनुयाईयों
द्वारा लिखित पुस्तक ’’आओ जैन धर्म को जानें’’ में लिखा है कि ऋषभदेव जी
(जैनी उन्हीं को आदिनाथ कहते हैं) वाला जीव ही बाबा आदम रूप में जन्मा था।
अब उसी सूक्ष्म वेद की वाणी है। :-
वही मुहम्मद वही महादेव, वही आदम वही ब्रह्मा।
दास गरीब दूसरा कोई नहीं, देख आपने घरमा।।
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Tuesday, June 16, 2020

Real knowledge of kuran

पवित्र कुरान
कबीर परमात्मा ही अल्लाहु अकबर हैं।
पवित्र कुरान शरीफ में प्रमाण है प्रभु सशरीर है तथा उसका नाम कबीर है।
क़ुरान सूरह अल-फुरकान नं. 25 आयत 52- 59 में प्रमाण है कि

हजरत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कह रहा है कि वह कबीर प्रभु वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो भी विद्यमान है सर्व सृष्टी की रचना छः दिन में की तथा सातवें दिन ऊपर अपने सत्यलोक में सिंहासन पर विराजमान हो(बैठ) गया। और सर्व सृष्टी रचनहार सर्व पाप विनाशक, सर्व शक्तिमान, अविनाशी परमात्मा मानव सदृश शरीर में आकार में है तथा सत्यलोक में रहता है। उसका नाम अल्लाह कबीर है।
हजरत मुहम्मद जी का खुदा कह रहा है कि हे पैगम्बर! काफिरों का कहा मत मानना, क्योंकि वे लोग कबीर को पूर्ण परमात्मा नहीं मानते। आप मेरे द्वारा दिए इस कुरान के ज्ञान के आधार पर अटल रहना कि कबीर ही पूर्ण प्रभु है तथा कबीर अल्लाह के लिए संघर्ष करना। क़ुरान सूरह
कुरान ज्ञान दाता अल्लाह (प्रभु) किसी और पूर्ण प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है कि ऐ पैगम्बर उस कबीर परमात्मा पर विश्वास रख जो तुझे जिंदा महात्मा के रूप में आकर मिला था।
फजाईले जिक्र में आयत नं. 1, 2, 3, 6 तथा 7 में स्पष्ट प्रमाण है कि ब्रह्म(काल अर्थात् क्षर पुरूष) कह रहा है कि तुम कबीर अल्लाह की बड़ाई बयान करो।

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Monday, June 15, 2020

श्री मद भागवत गीता के गूढ़ रहस्य


             श्री मद भागवत गीता के गूढ़ रहस्य

अध्याय 11 श्लोक 32 में पवित्र गीता बोलने वाला प्रभु कह रहा है कि ‘अर्जुन मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब सर्व लोकों को खाने के लिए प्रकट हुआ हूँ।‘
श्री कृष्ण जी तो पहले से ही अर्जुन के साथ थे। यदि कृष्ण जी बोल रहे होते तो यह नहीं कहते कि अब प्रवृत्त हुआ हूँ।

गीता जी के अध्याय 10 श्लोक 2 में कहा है कि मेरी उत्पत्ति को कोई नहीं जानता। इससे सिद्ध है कि काल भी उत्पन्न हुआ है। इसलिए यह कहीं पर आकार में भी है। नहीं तो कृष्ण जी तो अर्जुन के सामने ही खड़े थे। वे तो कह ही नहीं सकते कि मैं अनादि, अजन्मा हूँ।
गीता अध्याय 2 श्लोक 17 में कहा गया है कि नाश रहित उस परमात्मा को जान जिसका नाश करने में कोई समर्थ नहीं है। अपने विषय में गीता ज्ञान दाता(ब्रह्म) प्रभु अध्याय 4 मंत्र 5 तथा अध्याय 2 श्लोक 12 में कहा है कि मैं तो जन्म-मृत्यु में अर्थात् नाशवान हूँ।
गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी संत की प्राप्ति के पश्चात् उस परमपद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए। जहां जाने के पश्चात साधक लौटकर वापिस नहीं आता अर्थात मोक्ष प्राप्त करता है।
अध्याय 11 श्लोक 47 में पवित्र गीता जी को बोलने वाला प्रभु काल कह रहा है कि ‘हे अर्जुन यह मेरा वास्तविक काल रूप है'
पवित्र गीता जी को बोलने वाला काल (ब्रह्म-ज्योति निरंजन) है, न कि श्री कृष्ण जी। क्योंकि श्री कृष्ण जी ने पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ तथा बाद में कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ।
वास्तविक भक्ति विधि के लिए गीता ज्ञान दाता प्रभु (ब्रह्म) किसी तत्वदर्शी की खोज करने को कहता है (गीता अध्याय 4 श्लोक 34) इस से सिद्ध है गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) द्वारा बताई गई भक्ति विधि पूर्ण नहीं है।
गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि वास्तव में परमात्मा तो क्षर पुरुष व अक्षर पुरुष से अन्य है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है।
गीता जी अध्याय 15 श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता कह रहा है कि मुझे तो लोकवेद के आधार से पुरुषोत्तम कहते हैं, वास्तव में पुरुषोत्तम तो कोई और ही परमेश्वर है जो गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है।
गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में लिखा है कि हे अर्जुन यह योग (साधना) न तो अधिक खाने वाले का, न बिल्कुल न खाने (व्रत रखने) वाले का सिद्ध होता है।
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में संकेत है कि पूर्ण ज्ञान (तत्व ज्ञान) के लिए तत्वदर्शी संत के पास जा, मुझे पूर्ण ज्ञान नहीं है।

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Saturday, June 13, 2020

जैन धर्म की वास्तविकता

 जैन धर्म की वास्तविकता

राजा नाभिराज के पुत्र श्री ऋषभदेव जी हुए जो कि पवित्र जैन धर्म के प्रथम तीर्थ कर माने जाते हैं ऋषभदेव जी को पूर्ण परमात्मा मिले थे यह बड़े नेक आत्मा के थे परमेश्वर ने ऋषभदेव जी को अपना ज्ञान समझाया कि जो साधना आप कर रहे हो यह मोक्ष मार्ग नहीं है

"ऋषभ देव के आईया वो कवि नामे करतार "
 कबीर साहिब ने बताया था कि मैं वह कवि देव हूं जिसका जिक्र वेंदो में है। लेकिन
ऋषभदेव जी ने परमात्मा के ज्ञान को स्वीकार नहीं किया और अपनी साधना में लगे रहे ऋषभदेव जी वेदों में  वर्णित ओम मंत्र की साधना करते थे जिससे उनका पूर्ण मोक्ष नहीं हुआ और 84 लाख योनियों का कष्ट उठाया।
 महावीर जैन जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर थे।  उनकी जीवनी में स्पष्ट लिखा है उन्होंने कोई गुरु नहीं बनाया और ऐसे ही मुनि वृत्ति में घर से निकल गये और निर्वस्त्र रहने लगे कुछ दिन हठयोग करके अपने विचारों को जनता में व्यक्त करने लग गये थे वर्तमान में जो जैन धर्म में साधना है वो महावीर जैन द्वारा चलाए गए 363 पाखंड पर आधारित है महावीर जैन ने हठ योग साधना की थी जो कि गीता के विरुद्ध साधना है
गीता अध्याय 16 श्लोक 23,24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उन्हें न तो सिद्धि प्राप्त होती है ना कोई सुख प्राप्त होता है ना ही उनकी परम गति होती है
 तो जिससे उनको 84 लाख योनियों का कष्ट उठाना पड़ा और मोक्ष नही हुुआ तो इनके साधकों का मोक्ष कैसे संभव है ।
गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में
गीता ज्ञान दाता अर्जुन को उस परमात्मा की शरण में जाने को कह रहा है जिसकी शरण में जाने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होगी।
तत्व दर्शी संत की शरण में जाने से ही संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान और पूर्ण परमात्मा और मोक्ष मार्ग की जानकारी होती हैं
मोक्ष मार्ग की यथार्थ जानकारी के लिए
Click on word संत रामपाल जी महाराज

Friday, June 12, 2020

जाने बौद्ध धर्म की वास्तविकता

बौद्ध धर्म की वास्तविकता 

महात्मा बुद्ध एक पुण्य कर्मी आत्मा थे महात्मा बुद्ध ने 
कोई गुरु नहीं बनाया था सही मार्गदर्शन नहीं मिलने के कारण बुद्ध ने शास्त्र विरुद्ध तपस्या की अपने अनुभव का प्रचार करना शुरू कर दिया जबकि उनका ज्ञान किसी भी धर्मशास्त्र से नहीं मिलता जिससे व्यर्थ हैं उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता के विरुद्ध साधना हठयोग तप व्रत किए जिसे गीता में मूर्खों की साधना बताया

गीता अध्याय 16 श्लोक 23,24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उन्हें न तो सिद्धि प्राप्त होती है ना कोई सुख प्राप्त होता है ना ही उनकी परम गति होती है
तत्व दर्शी संत की शरण में जाने से ही संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान और पूर्ण परमात्मा और मोक्ष मार्ग की जानकारी होती हैं

 गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में
गीता ज्ञान दाता अर्जुन को उस परमात्मा की शरण में जाने को कह रहा है जिसकी शरण में जाने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होगी।
लेकिन महात्मा बुद्ध को आध्यात्मिक ज्ञान नही होने के कारण उन्होंने मान लिया की भगवान नही है।
बुद्ध की क्रियाओं पर चलते चलते बहुत से देश जैसे चीन जापान नास्तिक हो गए लेकिन जहां उनका जन्म हुआ भारत देश को नास्तिक नही बना सके। 
आखिर कौन है वह परमात्मा जिससे आस्तिकता बनी रही। 

वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज तत्वदर्शी संत है जिनकी शरण में जाने से सभी कष्टों से छुटकारा सभी असाध्य बीमारियों से छुटकारा और पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होगी जहाँ जाने के बाद साधक दुबारा लौटकर नहीं आते हैं अर्थात जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता हैं। 
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Thursday, June 11, 2020

गुरु ग्रंथ साहिब का ज्ञान

श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अनुसार पूर्ण परमात्मा कौन है
पूर्ण गुरु क्या पहचान है। 



श्री गुरु ग्रन्थ साहेब, पृष्ठ नं. 721, महला 1, राग तिलंग
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर कून करतार। हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदिगार।।
कून करतार का अर्थ होता है सर्व का रचनहार, अर्थात् शब्द शक्ति से रचना
करने वाला शब्द स्वरूपी प्रभु, हक्का कबीर का अर्थ है सत् कबीर, करीम का अर्थ
दयालु, परवरदिगार का अर्थ परमात्मा है।

श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 24, राग सीरी महला 1)
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहा आस ऐहो आधार।
नानक नीच कहै बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।
उपरोक्त अमृतवाणी में प्रमाण किया है कि जो काशी में धाणक (जुलाहा) है
यही (करतार) कुल का सृजनहार है। अति आधीन होकर श्री नानक साहेब जी कह
रहे हैं कि मैं सत कह रहा हूँ कि यह धाणक अर्थात् कबीर जुलाहा ही पूर्ण ब्रह्म
(सतपुरुष) है।

गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721 पर अपनी अमृतवाणी महला 1 में श्री नानक
जी ने कहा है कि -
“हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार।
नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक”
इसी का प्रमाण गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द
नं. 29
शब्द - एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।
मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार।
मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।।
काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।
मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।
नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।
गुरु ग्रन्थ साहेब, राग आसावरी, महला 1 के कुछ अंश -

साहिब मेरा एको है। एको है भाई एको है।
आपे रूप करे बहु भांती नानक बपुड़ा एव कह।। (पृ. 350)
जो तिन कीआ सो सचु थीआ, अमृत नाम सतगुरु दीआ।। (पृ. 352)
गुरु पुरे ते गति मति पाई। (पृ. 353)
बूडत जगु देखिआ तउ डरि भागे।
सतिगुरु राखे से बड़ भागे, नानक गुरु की चरणों लागे।। (पृ. 414)
मैं गुरु पूछिआ अपणा साचा बिचारी राम। (पृ. 439)
 उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि
साहिब (प्रभु) एक ही है तथा उनका (श्री नानक जी का) कोई मनुष्य रूप में वक्त
गुरु भी था जिसके विषय में कहा है कि पूरे गुरु से तत्वज्ञान प्राप्त हुआ तथा मेरे
गुरु जी ने मुझे (अमृत नाम) अमर मन्त्रा अर्थात् पूर्ण मोक्ष करने वाला उपदेश नाम
मन्त्रा दिया, वही मेरा गुरु नाना रूप धारण कर लेता है अर्थात् वही सतपुरुष है
वही जिंदा रूप बना लेता है। वही धाणक रूप में भी काशी नगर में विराजमान
होकर आम व्यक्ति अर्थात् भक्त की भूमिका कर रहा है। शास्त्रा विरुद्ध पूजा करके
सारे जगत् को जन्म-मृत्यु व कर्मफल की आग में जलते देखकर जीवन व्यर्थ होने
के डर से भाग कर मैंने गुरु जी के चरणों में शरण ली।
बलिहारी गुरु आपणे दिउहाड़ी सदवार।
जिन माणस ते देवते कीए करत न लागी वार।
आपीनै आप साजिओ आपीनै रचिओ नाउ।
दुयी कुदरति साजीऐ करि आसणु डिठो चाउ।
दाता करता आपि तूं तुसि देवहि करहि पसाउ।
तूं जाणोइ सभसै दे लैसहि जिंद कवाउ करि आसणु डिठो चाउ। (पृ. 463)
भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा जिंदा का रूप बनाकर बेई नदी पर आए अर्थात्
जिंदा कहलाए तथा स्वयं ही दो दुनियाँ ऊपर (सतलोक आदि) तथा नीचे (ब्रह्म व
परब्रह्म के लोक) को रचकर ऊपर सत्यलोक में आकार में आसन पर बैठ कर चाव
के साथ अपने द्वारा रची दुनियाँ को देख रहे हो तथा आप ही स्वयम्भू अर्थात् माता
के गर्भ से जन्म नहीं लेते, स्वयं प्रकट होते हो। यही प्रमाण पवित्रा यजुर्वेद अध्याय
40 मं. 8 में है कि कविर् मनीषि स्वयम्भूः परिभू व्यवधाता, भावार्थ है कि कवीर
परमात्मा सर्वज्ञ है (मनीषि का अर्थ सर्वज्ञ होता है) तथा अपने आप प्रकट होता है।
वह (परिभू) सनातन अर्थात् सर्वप्रथम वाला प्रभु है। वह सर्व ब्रह्मण्डों का (व्यवधाता)
भिन्न-भिन्न अर्थात् सर्व लोकों का रचनहार है।

एहू जीउ बहुते जनम भरमिआ, ता सतिगुरु शबद सुणाइया।। (पृ. 465)
भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि मेरा यह जीव बहुत समय
से जन्म तथा मृत्यु के चक्र में भ्रमता रहा अब पूर्ण सतगुरु ने वास्तविक नाम प्रदान
किया।
श्री नानक जी के पूर्व जन्म - सतयुग में राजा अम्ब्रीष, त्रोतायुग में राजा जनक
हुए थे और फिर नानक जी हुए तथा अन्य योनियों के जन्मों की तो गिनती ही नहीं
है।
आज वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज पूर्ण संत है। 
जिनके द्वारा दी गई सतभक्ति से पूर्ण मोक्ष संभव है। 
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आओ जैन धर्म को जाने

आओ जैन धर्म को जाने ऋषभदेव जी राजा नाभिराज के पुत्र थे। नाभिराज जी अयोध्या के राजा थे। ऋषभदेव जी के सौ पुत्र तथा एक पुत्री थी। एक दिन...