Holy scripture

Monday, June 15, 2020

श्री मद भागवत गीता के गूढ़ रहस्य


             श्री मद भागवत गीता के गूढ़ रहस्य

अध्याय 11 श्लोक 32 में पवित्र गीता बोलने वाला प्रभु कह रहा है कि ‘अर्जुन मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब सर्व लोकों को खाने के लिए प्रकट हुआ हूँ।‘
श्री कृष्ण जी तो पहले से ही अर्जुन के साथ थे। यदि कृष्ण जी बोल रहे होते तो यह नहीं कहते कि अब प्रवृत्त हुआ हूँ।

गीता जी के अध्याय 10 श्लोक 2 में कहा है कि मेरी उत्पत्ति को कोई नहीं जानता। इससे सिद्ध है कि काल भी उत्पन्न हुआ है। इसलिए यह कहीं पर आकार में भी है। नहीं तो कृष्ण जी तो अर्जुन के सामने ही खड़े थे। वे तो कह ही नहीं सकते कि मैं अनादि, अजन्मा हूँ।
गीता अध्याय 2 श्लोक 17 में कहा गया है कि नाश रहित उस परमात्मा को जान जिसका नाश करने में कोई समर्थ नहीं है। अपने विषय में गीता ज्ञान दाता(ब्रह्म) प्रभु अध्याय 4 मंत्र 5 तथा अध्याय 2 श्लोक 12 में कहा है कि मैं तो जन्म-मृत्यु में अर्थात् नाशवान हूँ।
गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी संत की प्राप्ति के पश्चात् उस परमपद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए। जहां जाने के पश्चात साधक लौटकर वापिस नहीं आता अर्थात मोक्ष प्राप्त करता है।
अध्याय 11 श्लोक 47 में पवित्र गीता जी को बोलने वाला प्रभु काल कह रहा है कि ‘हे अर्जुन यह मेरा वास्तविक काल रूप है'
पवित्र गीता जी को बोलने वाला काल (ब्रह्म-ज्योति निरंजन) है, न कि श्री कृष्ण जी। क्योंकि श्री कृष्ण जी ने पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ तथा बाद में कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ।
वास्तविक भक्ति विधि के लिए गीता ज्ञान दाता प्रभु (ब्रह्म) किसी तत्वदर्शी की खोज करने को कहता है (गीता अध्याय 4 श्लोक 34) इस से सिद्ध है गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) द्वारा बताई गई भक्ति विधि पूर्ण नहीं है।
गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि वास्तव में परमात्मा तो क्षर पुरुष व अक्षर पुरुष से अन्य है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है।
गीता जी अध्याय 15 श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता कह रहा है कि मुझे तो लोकवेद के आधार से पुरुषोत्तम कहते हैं, वास्तव में पुरुषोत्तम तो कोई और ही परमेश्वर है जो गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है।
गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में लिखा है कि हे अर्जुन यह योग (साधना) न तो अधिक खाने वाले का, न बिल्कुल न खाने (व्रत रखने) वाले का सिद्ध होता है।
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में संकेत है कि पूर्ण ज्ञान (तत्व ज्ञान) के लिए तत्वदर्शी संत के पास जा, मुझे पूर्ण ज्ञान नहीं है।

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