जैन धर्म की वास्तविकता
राजा नाभिराज के पुत्र श्री ऋषभदेव जी हुए जो कि पवित्र जैन धर्म के प्रथम तीर्थ कर माने जाते हैं ऋषभदेव जी को पूर्ण परमात्मा मिले थे यह बड़े नेक आत्मा के थे परमेश्वर ने ऋषभदेव जी को अपना ज्ञान समझाया कि जो साधना आप कर रहे हो यह मोक्ष मार्ग नहीं है
"ऋषभ देव के आईया वो कवि नामे करतार "
कबीर साहिब ने बताया था कि मैं वह कवि देव हूं जिसका जिक्र वेंदो में है। लेकिन
ऋषभदेव जी ने परमात्मा के ज्ञान को स्वीकार नहीं किया और अपनी साधना में लगे रहे ऋषभदेव जी वेदों में वर्णित ओम मंत्र की साधना करते थे जिससे उनका पूर्ण मोक्ष नहीं हुआ और 84 लाख योनियों का कष्ट उठाया।
महावीर जैन जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर थे। उनकी जीवनी में स्पष्ट लिखा है उन्होंने कोई गुरु नहीं बनाया और ऐसे ही मुनि वृत्ति में घर से निकल गये और निर्वस्त्र रहने लगे कुछ दिन हठयोग करके अपने विचारों को जनता में व्यक्त करने लग गये थे वर्तमान में जो जैन धर्म में साधना है वो महावीर जैन द्वारा चलाए गए 363 पाखंड पर आधारित है महावीर जैन ने हठ योग साधना की थी जो कि गीता के विरुद्ध साधना है
गीता अध्याय 16 श्लोक 23,24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उन्हें न तो सिद्धि प्राप्त होती है ना कोई सुख प्राप्त होता है ना ही उनकी परम गति होती है
तो जिससे उनको 84 लाख योनियों का कष्ट उठाना पड़ा और मोक्ष नही हुुआ तो इनके साधकों का मोक्ष कैसे संभव है ।
गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में
गीता ज्ञान दाता अर्जुन को उस परमात्मा की शरण में जाने को कह रहा है जिसकी शरण में जाने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होगी।
तत्व दर्शी संत की शरण में जाने से ही संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान और पूर्ण परमात्मा और मोक्ष मार्ग की जानकारी होती हैं
मोक्ष मार्ग की यथार्थ जानकारी के लिए
Click on word संत रामपाल जी महाराज
राजा नाभिराज के पुत्र श्री ऋषभदेव जी हुए जो कि पवित्र जैन धर्म के प्रथम तीर्थ कर माने जाते हैं ऋषभदेव जी को पूर्ण परमात्मा मिले थे यह बड़े नेक आत्मा के थे परमेश्वर ने ऋषभदेव जी को अपना ज्ञान समझाया कि जो साधना आप कर रहे हो यह मोक्ष मार्ग नहीं है
"ऋषभ देव के आईया वो कवि नामे करतार "
कबीर साहिब ने बताया था कि मैं वह कवि देव हूं जिसका जिक्र वेंदो में है। लेकिन
ऋषभदेव जी ने परमात्मा के ज्ञान को स्वीकार नहीं किया और अपनी साधना में लगे रहे ऋषभदेव जी वेदों में वर्णित ओम मंत्र की साधना करते थे जिससे उनका पूर्ण मोक्ष नहीं हुआ और 84 लाख योनियों का कष्ट उठाया।
महावीर जैन जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर थे। उनकी जीवनी में स्पष्ट लिखा है उन्होंने कोई गुरु नहीं बनाया और ऐसे ही मुनि वृत्ति में घर से निकल गये और निर्वस्त्र रहने लगे कुछ दिन हठयोग करके अपने विचारों को जनता में व्यक्त करने लग गये थे वर्तमान में जो जैन धर्म में साधना है वो महावीर जैन द्वारा चलाए गए 363 पाखंड पर आधारित है महावीर जैन ने हठ योग साधना की थी जो कि गीता के विरुद्ध साधना है
गीता अध्याय 16 श्लोक 23,24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उन्हें न तो सिद्धि प्राप्त होती है ना कोई सुख प्राप्त होता है ना ही उनकी परम गति होती है
तो जिससे उनको 84 लाख योनियों का कष्ट उठाना पड़ा और मोक्ष नही हुुआ तो इनके साधकों का मोक्ष कैसे संभव है ।
गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में
गीता ज्ञान दाता अर्जुन को उस परमात्मा की शरण में जाने को कह रहा है जिसकी शरण में जाने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होगी।
तत्व दर्शी संत की शरण में जाने से ही संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान और पूर्ण परमात्मा और मोक्ष मार्ग की जानकारी होती हैं
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